तो आशंकाएं सच होने लगी हैं। हिन्दुस्तान की पत्रकारिता पिछले 73 साल में अपने सबसे बुरे दौर में जा पहुंची है। कमर तो पहले ही टूटी हुई थी। रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी है।
पत्रकारिता को अगर लोकतंत्र में चौथा स्तंभ कहा जाता है, तो प्रश्न यह है कि इस महत्वपूर्ण स्थान की क्या हम रक्षा कर पा रहे हैं?
शब्दों की सत्ता किसी का मोहताज नहीं होती। बेजोड़ शायर और गीतकार साहिर लुधियानवी ने अपनी रचनाओं से समूची दुनिया को दीवाना बना रखा था
सोशल मीडिया के अनेक अवतारों पर इन दिनों कोरोना से जुड़ी बेहद संवेदनशील खबरों की बाढ़ आई हुई है। पड़ताल करने के बाद इनमें आए कई वीडियो पुराने निकलते हैं।
डेढ़ महीने से ज़्यादा हो गया। अभी दो-तीन महीने और चलेगा, ऐसी आशंका है। उसके बाद साल भर तक इसके आफ्टर इफेक्ट्स होंगे।
‘रिपब्लिक टीवी’ के संपादक अरनब गोस्वामी से मुंबई में दस-बारह घंटे की पूछताछ इन दिनों बहस का मुद्दा है।
रिपब्लिक टेलिविजन चैनल के अरनब गोस्वामी पर मुंबई में हमले को शायद ही कोई जायज ठहराए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की प्रतिक्रिया शारीरिक रूप से चोट पहुंचाने जैसी कार्रवाई से हो
वाकई मुश्किल दौर है। देश के लिए भी और पत्रकारिता के लिए भी। कोरोना जैसी संक्रामक भयावह महामारी ने समूची दुनिया को आतंकित कर दिया है
टेलिविजन चैनलों के राष्ट्रीय संगठन ने गुस्सा दिखाया है। सरकारी विज्ञापन बंद नहीं होने चाहिए।
इन दिनों पत्रकारिता तलवार की नोक पर चलने जैसी हो गई है। ‘द वायर’ के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार ने एफआईआर दर्ज की है। स्पष्टीकरण के बावजूद यह रवैया बेहद आपत्तिजनक है।