पूर्वोत्तर में प्रगति के साथ सूचना क्रांति, अभिव्यक्ति की आजादी और सोशल मीडिया के प्रभाव से यह भ्रम बनाने के प्रयास हुए हैं कि यह अभूतपूर्व स्थिति है।
किसी अन्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के आने पर नियमों के अनुसार आवास, वाहन और एक सहयोगी, पुलिस सुरक्षा का अधिकार है।
भारत विरोधी लॉबी के कुछ नेताओं ने तथ्यों को जाने समझे बिना यूरोपीय संसद में मणिपुर हिंसा से जुड़ा एक प्रस्ताव पास करवा दिया।
दिल्ली में बाढ़ जैसी स्थिति का एक अन्य कारण बाढ़ क्षेत्र का अतिक्रमण है जिससे पानी गुजरने के लिए बहुत कम जगह बचती है।
पिछले दिनों भोपाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता लाने का आह्वान किया और अल्पसंख्यक समुदायों को सुधार के खिलाफ भड़काने के लिए विपक्षी दलों की आलोचना की।
राहुल गांधी और उनकी समर्थक देशी-विदशी टोलियों ने पिछले महीनों के दौरान भारत में लोकतंत्र खत्म होने, मीडिया के दमन, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की मातमी धुन के कुप्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी।
एनयूजेआई स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन और दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन की ओर से 24 जून को नई दिल्ली स्थित हरियाणा भवन में 'आपातकाल और प्रेस' विषय पर किया गया संगोष्ठी का आयोजन
आप कृपया इस शीर्षक से चौंकिए नहीं और न ही इसे प्रशंसा की अतिशयोक्ति समझें। मैं तथ्य के आधार पर भारतीयों का ध्यान दिलाना चाहता हूं।
नारों, अभियानों, नरम हिंदुत्व की धारा और राहुल गांधी की भारत और अमेरिका के ट्रक ड्राइवर के साथ जादुई झप्पी के शगूफों से अगले चुनाव जीते जा सकेंगे?
मीडिया की आजादी और उसकी आत्म अनुशासन-आचार संहिता, संवैधानिक संरक्षण पर निरंतर जागरूकता निश्चित रूप से आवश्यक है। लेकिन भारत के सुरक्षा तंत्र की जासूसी पर नजर तथा कठोर कानून भी बहुत जरूरी हैं।